आरक्षण एक प्रकार से सभी व्यक्तियों को एक समान अधिकार दिलाने योग्य बनाया गया एक नियम है,
परन्तु आज इस बारे में हम विस्तार पूर्वक जानने का प्रयास करेंगे की वास्तव में आरक्षण वरदान है या अभिशाप !
आरक्षण एक वरदान
आरक्षण हमारे भारत देश में अनुसूचित जाति एवं
पिछड़ी जाति के व्यक्तियों को एक समान अधिकार दिलाने हेतु किया गया प्रयास है,
चूकि प्रतिभा तथा योग्यता कुल या जाति देख कर नहीं आती, वो तो किसी भी इंसान में हो सकती है,
इसको ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा कई ऐसी योजनाएं तैयार की गई है,
जिससे पिछड़े वर्ग को अत्यंत लाभ मिलता है और
अपना सामर्थ्य अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर भी मिलता है और
पिछड़े वर्ग के लोग इसका भलीभांति तरीके से उपयोग कर रहे है,
शिक्षा के क्षेत्र में, आर्थिक क्षेत्र में, एवं अन्य सभी क्षेत्रों में आज अनुसूचित जनजातियों अथवा
पिछड़ी जातियों को भरपूर आरक्षण मिल रहा है,
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जिसके फलस्वरूप आज पिछड़ी जातीय भी सामान्य जातियों के सामान पद में अपना अस्तित्व बना रहे है,
इस प्रकार यह निम्न वर्ग के लोगो के लिए एक वरदान के रूप में प्रकट होता है।
परन्तु आइए आरक्षण को एक अभिशाप के रूप में देखने को प्रयास करते है……
आरक्षण एक अभिशाप
आज कल हर क्षेत्र में कार्य आरक्षण के आधार पर किए जा रहे हैं,
जिससे ना केवल नव युवाओं में जाति के प्रति भेदभाव वल्कि एक ईर्ष्या की भावना भी उत्पन्न हो रही है,
आज कल सामर्थ्य के आधार पर नहीं बल्कि आरक्षण के आधार पर हर क्षेत्र में व्यक्तियों की चयनित किया जा रहा है,
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जिसकी वजह से आज हमारे कार्यक्षेत्र में प्रगति के स्थान पर शिथिरता का फैलाव हो रहा है,
आज योग्य व्यक्ति आरक्षण का शिकार हो रहा जो कि हमारे देश एवं कार्यक्षेत्र दोनों के लिए हानिकारक है।
आरक्षण के आधार पर निम्नवर्ग के कम योग्य व्यक्ति को उसी स्थान पर चयनित के लिया जा रहा,
जहां पर सामान्य वर्ग के अधिक योग्य व्यक्ति को नकार दिया जाता है,
आज हमारे समाज में योग्यता की महत्वता घटती जा रही है तथा जाती की महत्वता बढ़ती जा रही है।
इस प्रकार आरक्षण एक सामान्य वर्ग के योग्य व्यक्तियों के लिए अभिशाप का कार्य कर रही है।
निष्कर्ष
आरक्षण का मुख्य उद्देश्य दलित एवं शोषित वर्ग के लोगो को सामान्य वर्ग जितना अधिकार दिलाने का था,
परन्तु आरक्षण जातिवाद को प्रोत्साहन दे कर देश में जाति – भेद को बढ़ावा दे रहा है,
आरक्षण एक तरह से योग्य व्यक्तियों के मुंह में निम्न वर्ग द्वारा मारा गया तमाचा है,
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आरक्षण को शिक्षा के क्षेत्र से हटाना अतिआवश्यक है,
अन्यथा नवयुवकों ने जातिवाद को लेकर भेदभाव और भी दृढ़ होता जाएगा।
ये सिर्फ एक बिचार है, जो लेखक के स्वयं के हैं।
सूजल तिवारी, अमर रिपब्लिक