स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा..
आज ऐसे महान पुरुष की पूर्ण तिथि है, जिन्होंने नारा दिया था कि
“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।
ये नारा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी ने दिया
जिससे अंग्रेजो की नींद हराम हो गयी।
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बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के चिक्कन गांव में 23 जुलाई 1856 को हुआ
और निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ था। इनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे।
अपने परिश्रम के बल पर शाला के मेधावी छात्रों में बाल गंगाधर तिलक की गिनती होती थी।
वे पढ़ने के साथ-साथ प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम भी करते थे,
अतः उनका शरीर स्वस्थ और पुष्ट था। 1879 में उन्होंने बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की।
घरवाले और उनके मित्र संबंधी यह आशा कर रहे थे कि तिलक वकालत कर धन कमाएंगे और
वंश के गौरव को बढ़ाएंगे, परंतु तिलक ने प्रारंभ से ही जनता की सेवा का व्रत धारण कर लिया था।
परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने अपनी सेवाएं पूर्ण रूप से एक शिक्षण संस्था के निर्माण को दे दीं।
सन् 1880 में न्यू इंग्लिश स्कूल और कुछ साल बाद फर्ग्युसन कॉलेज की स्थापना की।
तिलक का यह कथन कि ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ बहुत प्रसिद्ध हुआ।
लोग उन्हें आदर से ‘लोकमान्य’ नाम से पुकार कर सम्मानित करते थे। उन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।
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लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा
शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया।
इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।
तिलक के क्रांतिकारी कदमों से अंग्रेज बौखला गए और
उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर छ: साल के लिए ‘देश निकाला’ का दंड दिया और
बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया था।
इस अवधि में तिलक ने गीता का अध्ययन किया और गीता रहस्य नामक भाष्य भी लिखा।
तिलक के जेल से छूटने के बाद जब उनका गीता रहस्य प्रकाशित हुआ तो
उसका प्रचार-प्रसार आंधी-तूफान की तरह बढ़ा और जनमानस उससे अत्यधिक आंदोलित हुआ।
तिलक ने मराठी में ‘मराठा दर्पण व केसरी’ नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए
जो जनता में काफी लोकप्रिय हुए। जिसमें तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और
भारतीय संस्कृति के प्रति हीनभावना की बहुत आलोचना की।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारतीयों को तुरंत पूर्ण स्वराज देने की मांग की,
जिसके फलस्वरूप और केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
ऐसे स्वन्त्रता संग्राम के जनक को शत शत नमन।
राजीव द्विवेदी, अमर रिपब्लिक