रीवा। विधानसभा चुनाव 2018 में विंध्य प्रदेश में भाजपा ने एक नया इतिहास रचा था,
रीवा जिले की आठो विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा हुआ।
हालांकि राजनैतिक जानकर इस ऐतिहासिक जीत को तत्कालीन रीवा कलेक्टर और भाजपा का मजबूत मैनेजमेंट मानते हैं।
नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना, रिकार्ड तोड़ महंगाई जनता को उपलब्धि के तौर पर मिला है।
अच्छे दिन वाला जुमला भी फीका पड़ गया है। विकास पुरुष का असर भी समय के साथ कमजोर हो गया है।
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस पार्टी जमीनी स्तर पर तैयारियों को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा विंध्य प्रदेश में अपना जलवा बरकरार रख पाएगी?
लोगों के बीच भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार की लोकप्रियता का असर समय के साथ कमजोर हुआ है,
यह राजनैतिक पंडित भी मानते हैं। विंध्य प्रदेश में कांग्रेस लगभग अंतिम पायदान पर है,
ऐसे में क्या वह विधानसभा चुनाव में कोई नया कारनामा कर पाएगी, यह भी बहुत बड़ा सवाल है।
कमजोर हो गया भाजपा का जादू, महंगाई से जनता पस्त
लोकसभा चुनाव 2014 से भाजपा का जोर पूरे देश में नजर आने लगा।
अच्छे दिन आने वाले हैं, जैसे जुमलों ने लोगों को बरगला दिया और भाजपा को केंद्र की सरकार नसीब हो गई।
जनता जनार्दन ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव 2019 में भरोसा किया कि शायद अब महंगाई से राहत मिलेगी।
लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं बल्कि रिकार्ड तोड़ महंगाई ने लोगों को परेशान और हलाकान कर दिया।
अब देखना यह है कि बढ़ती मंहगाई को झेलने वाली जनता जनार्दन आने वाले विधानसभा और
लोकसभा चुनाव में भाजपा का कितना साथ देती है।
जमींदोज कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसे बन गए हैं हालात
विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी चारों खाने चित हो गई है।
दिग्गज नेताओं ने चुनावी हार का स्वाद चखा है।
अब देखना यह है कि टुकड़ों में नजर आने वाली कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव के पहले क्या एक हो पाएगी?
विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस को नये सिरे से स्थापित करने की चुनौती पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल,
राजेंद्र सिंह सहित अन्य नेताओं के कंधों पर है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को विंध्य क्षेत्र में कितनी मजबूती मिलेगी,
यह तो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ही साफ हो पाएगा।