सेमरिया/रीवा : नेताओं के सभाओं और चुनावी घोषणापत्र तक में ही सीमित रह गया,
आदिवासी बस्तियों का विकास, इलेक्शन के समय वोट मांगने और
चुनाव के पहले फोटो खिंचवाने के लिए ही नेताओं को क्यूं याद आती हैं।
हरिजन और आदिवासी बस्तियां,
वोट बैंक की राजनीति और चुनाव आयोग के आंकड़े बनने तक ही सीमित रह गए आदिवासी और दलित,
अपने सफेद पोशाक में थोड़ा सा दाग़ लग जाने के बाद तुरंत पोशाक बदल देने वाले नेताजी,
अब ध्यान दें भी तों क्यूं दें वह तो अपने आलीशान बंगले में रहते हैं और महंगी गाड़ियों में चढ़ते हैं,
भला उनको इनसे क्या मतलब है, आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद आज़ भी विकास से हैं अछूते हैं।
सेमरिया विधानसभा के चौरा गांव के कुलपत निवासी दलित आदिवासी,
विकास को आईना दिखाती ये तस्वीरें हैं।
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मध्यप्रदेश के रीवा जिले के सेमरिया विधानसभा के चौरा गांव के कुलपत बस्ती की हैं,
जहां विकास इसकदर हुआ कि लोग अब अपने घरों को छोड़कर घुटने भर पानी और कीचड़ में रहने के लिए मजबूर हैं।
बीते चार-पांच दिनों से हो रही झमाझम बारिश के चलते
आदिवासियों की बस्ती कुलपत में लोगों के घरों के अंदर घुटने तक पानी भरा हुआ है।
जिससे उनका आम जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है और
उनके खाने-पीने की चीजें पानी में बह जाने के कारण बूढ़े,
महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे बीते चार दिनों से भूखें-प्यासे मरने के लिए मजबूर हैं और
उनकी इस दुर्दशा की तरफ कोई भी ध्यान देने वाला नहीं है।
कुलपत निवासी आदिवासियों की यह स्थिति आगे भी कब तक बनी रहती हैं या
फिर शासन-प्रशासन से उनको कोई मदद मिलती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।