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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा अनेक दृष्टियों से नई उम्मीदों को पंख लगाने के साथ

भारत को शक्तिशाली बनाने वाली साबित होगी।

अमेरिका की यात्रा के दौरान हुए विभिन्न समझौते भारत की तकनीकी एवं सामरिक जरूरतों को पूरा करने में अहम कदम साबित होंगे।

व्यापार व उद्योग के साथ- साथ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमेरिका के साथ द्विपक्षीय सहयोग ने नई उम्मीदें जगाई हैं।

इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जो प्रयास किए वे मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भरता के प्रयास,

नये भारत- सशक्त भारत एवं सतत विकास की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होंगे।

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भारत की अमेरिका यात्रा से चीन की नींद उड़ गयी है वहीं पाकिस्तान भी बौखलाया है।

भारत के दोनों दुश्मन राष्ट्रों की तिलमिलाहट से जाहिर हो रहा है कि भारत अब एक बड़ी ताकत बन रहा है।

चीन बेचैन है भारत के प्रधानमंत्री की इस ऐतिहासिक, निर्णायक एवं श्रेयस्कर अमेरिका यात्रा से।

भारत एवं अमेरिका के बीच हुए समझौते यह भी दर्शाते हैं कि आज भारत को जितनी आवश्यकता अमेरिका की है,

उससे कहीं अधिक उसे भारत की है।

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इसका एक कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का कम होता प्रभाव और भारत का बढ़ता हुआ कद है।

अमेरिका यह जान रहा है कि चीन के तानाशाही भरे रवैये से निपटने के लिए भारत का साथ आवश्यक है।

वास्तव में इस आवश्यकता ने भी अमेरिका में भारत की अहमियत बढ़ाने का काम किया है।

यह अहमियत यही बता रही है कि अब भारत का समय आ गया है।

भारत एवं अमेरिका की दोस्ती प्रधानमंत्री की यात्रा से प्रगाढ़ हुई है, जो दोनों देशों के लिये शुभता का सूचक है।

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मोदी की इस यात्रा से भारत-अमेरिका संबंधों की एक नई इबारत लिखी गयी है और

नये संकल्पों की गौरवशाली यात्रा शुरू हो गई है।

दुनिया के दो महान लोकतंत्र देश दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपने बंधन को मजबूत कर रहे हैं।

भारत लोकतंत्र की जननी है और अमेरिका आधुनिक लोकतंत्र का चैंपियन है।

दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मजबूती देने में दोनों के साझा प्रयत्नों के सुपरिणाम सामने आयेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वदेश लौटकर भारत-अमेरिका संबंधों के बारे में कहा,

“हम साथ मिलकर सिर्फ नीतियां और समझौते ही नहीं बना रहे हैं।

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हम जीवन, सपनों और नियति को भी आकार दे रहे हैं।

” वास्तव में आज अमेरिका ही नहीं, विश्व का हर प्रमुख देश भारत को अपने साथ रखना आवश्यक समझ रहा है।

कहना न होगा कि वैश्विक मंच पर योग का विषय हो, या अहिंसा का या फिर आतंकवाद से निपटने का,

जलवायु परिवर्तन का मसला हो या फिर जी-20 देशों की अध्यक्षता की बात,

भारत, दुनिया को नई दिशा दे रहा है, नई उम्मीदें जगा रहा है।

स्वयं, समाज एवं राष्ट्र के विकास से आगे बढ़ने की सोच देने वाला भारत अब दुनिया का विकास चाहता है।

यही वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र आज दुनिया को भा रहा है

और इसी कारण हर कोई भारत की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है, चाहे वो शक्तिशाली राष्ट्र ही क्यों न हो।

निगाहें केवल चीन और पाकिस्तान की ही नहीं, बल्कि भारतीय प्रधानमंत्री के , अमेरीकी दौरे पर दुनिया भर के देशों की थीं।

यह अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरीकी राष्ट्रपति के बीच शिखर वार्ता के बाद जो संयुक्त बयान जारी हुआ,

उसमें पाकिस्तान के साथ चीन पर भी निशाना साधा गया।

ऐसा करना इसलिए आवश्यक था,

क्योंकि पाकिस्तान जहां आतंकवाद को सहयोग-समर्थन और संरक्षण देने से बाज नहीं आ रहा है,

वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते एशिया ही नहीं, पूरे विश्व के लिए खतरा बन गया है।

आज दुनिया आतंकमुक्ति संसार की संरचना चाहती है ।

अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री का व्हाइट हाउस में जैसा भव्य स्वागत हुआ और

अमेरिकी संसद में उनके संबोधन को जिस तरह सराहा गया,

उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि दोनों देशों के संबंध एक नए युग में पहुंच रहे हैं।

वैसे तो दोनों देशों के संबंध एक लंबे समय से प्रगाढ़ हो रहे हैं,

लेकिन इसके पहले किसी भारतीय प्रधानमंत्री को अमेरिका में शायद ही इतनी महत्ता मिली हो।

इस महत्ता को रेखांकित कर रहे हैं रक्षा, तकनीक, उद्योग आदि क्षेत्र में हुए वे अनेक महत्वपूर्ण समझौते,

जो भारत और अमेरिका के बीच हुए। इनमें कुछ समझौते ऐसे हैं, जिनके लिए भारत दशकों से प्रयासरत था,

जैसे कि जीई एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड के बीच युद्धक विमानों के इंजन एफ 414 को मिलकर भारत में बनाने का समझौता।

इस तरह के समझौते दोनों देशों की निकटता को भी रेखांकित कर रहे हैं और एक-दूसरे के प्रति भरोसे को भी।

अमेरिका का भारत पर बढ़ता भरोसा इस बात का परिचायक है कि

भारत विश्व की एक महाबड़ी शक्ति बनने की राह पर अग्रसर है

और भारत के बिना चीन को करारा जवाब देना नामुमकिन है।

इन नये बनते परिदृश्यों में चीनी विश्लेषकों का मानना है कि

अमेरिका की कोशिश भारत को चीन से मुकाबले के लिए तैयार करने की है,

जबकि दूसरी ओर वह चीन की आर्थिक प्रगति में अवरुद्ध करना चाहता है।

कुछ विश्लेषकों के मुताबिक,

“भारत के साथ आर्थिक व व्यापार सहयोग मजबूत करने के अमेरिका के पुरजोर प्रयास का मुख्य उद्देश्य

चीन का आर्थिक विकास धीमा करना है।”

इन दावों से इतर एक तथ्य यह है कि भारत के लिए अमेरिका के साथ व्यापार करना फायदे का सौदा रहा है।

भारत को अमेरिका के साथ व्यापार करके अधिक आय होती है,

जबकि चीन के साथ व्यापार के कारण बीते कुछ वर्षों से देश को सालाना औसतन 60 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा था।

एडवांस्ड एप्लाइड मटीरियल्स के गैरी डिकर्सन ने मोदी से मुलाकात के बाद ,

एक इंजीनियरिंग केंद्र स्थापित करने के लिए 400 मिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा भी की है

जिससे कई व्यावसायिक अवसर सृजित होंगे। बड़ी संख्या में विद्यार्थी, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं।

कुशल श्रमिकों, विद्यार्थियों आदि के आदान-प्रदान के नियमों को सरल बनाने से न केवल वीजा प्रक्रिया रफ्तार पकड़ेगी

बल्कि वीजा की संख्या में वृद्धि युवाओं को नए मौके देगी।

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अहमदाबाद और बेंगलूरु में अमेरिका के दो नए वाणिज्य दूतावास खोलने व भारत द्वारा अमेरिका के सिएटल में और

इसके बाद दो अन्य स्थानों पर वाणिज्य दूतावास खोलने की सहमति को भी उम्मीद भरे

अवसरों की इसी दृष्टि से देखा जा सकता है।

Amar republic

अमेरिका एवं भारत के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता से चीन पर भारत की निर्भरता न्यूनतम हो जायेगी।

चीन की दादागिरी उसके लिये कितनी नुकसानदेह साबित हो रही है कि एक बड़ा बाजार चीन के हाथ से निकल रहा है।

बात भारत एवं अमेरिका की ही नहीं है, बल्कि दुनिया के अनेक देश चीन की नीति एवं नीयत से परेशान हैं।

बात खनिज क्षेत्र की करें तो अमेरिका के साथ बनी

“खनिज सुरक्षा साझेदारी” के तहत धातुओं के क्षेत्र में बनी सहमति से चीन पर निर्भरता खत्म हो सकेगी।

खासतौर से ईवी बैटरियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता तो मिलेगी ही, ड्रोन, सोलर पैनल आदि निर्माणों को भी गति मिलेगी।

सब जानते हैं कि अमेरिका और इजरायल के द्वारा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में साझेदारी ने दोनों देशों की

अर्थव्यवस्था के विकास और स्थिरता के उद्देश्यों को प्राप्त करने में बड़ा योगदान दिया है।

इसी तारतम्य में भारत का अमेरिका के साथ सामरिक संबंध भी महत्वपूर्ण है।

अमेरिका से हुए व्यापारिक समझौतों से भारत की व्यापारिक एवं औद्योगिक विकास की गति को नये पंख लगेंगे।

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इस तरह, चीन प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा को अपनी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेरने वाला मान रहा है।

ये महत्वाकांक्षाएं हैं एशिया में सैन्य, आर्थिक व तकनीक क्षेत्रों में प्रभुत्व जमाना।

चीन एशिया पर अपना नेतृत्व थोपने की कोशिश कर रहा है, जिसके एक हिस्से के रूप में र भारत,

वियतनाम, इंडोनेशिया व अन्य देशों की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठाना शामिल है।

इन हालात के बीच मोदी की अमेरिका यात्रा एशिया के भाग्य के र लिए नये सूर्य का उदय कही जा सकती है।

‫ד(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं। व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।)


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