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आज के दौर की एक अकथनीय व्यथा के बीच गायत्री परिवार की यह कई दशकों से प्रतिदिन की जाने वाली प्रार्थना बरबस ही याद आ जाती है कि

हम सुधरेंगे युग सुधारेगा !
हम बदलेंगे युग बदलेगा !!

लेकिन आज वर्तमान समय में
हम सुधरेंगे युग सुधारेगा सिर्फ और सिर्फ एक सुन्दर उदघोश तक ही सीमित रह गया है।
ऐसा सोचने के लिए इस लिए विबश होना पड़ता है क्यो कि एक दौर ऐसा था कि चाहे आर्थिक नजरिए से हो या अध्यात्मिक नजरिया दोनों नजरिए से पशुधन की विशेष महत्व मिलता था, लेकिन अप्रत्याशित ढंग से ऐसा अकल्पनीय दौर आया कि वर्तमान में पशुधन पर हो रहे अत्याचारों की घटनाओं को सुनकर रूह कांप जाती है।

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आखिर इसका जिम्मेदार कौन है, निःसंदेह खत्म होती मानवीय संवेदना वह चाहे समाज की हो शासन प्रशासन की क्यो कि सब जगह तथाकथित मानवता के अलंबरदार ही बैठे हैं फिर भी इंसानियत को झकझोर देने वाली आए दिन की घटनाओं पर रोक क्यो नहीं लग पा रही है निश्चित ही समाज के ठेकेदारो के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।समाज और शासन प्रशासन को किस तरह से जबाबदेही मानी जा सकती है। जैसे कि

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समाज की जबाबदेही
आज समाज में कतिपय लोगों को छोड़ कर अनेक लोग पशुधन को सिर्फ तत्कालिक लाभ तक महत्व देने लगे हैं जैसे गाय का दूध निकालने के बाद उसे छोड़ रहे हैं पडोसी अपना पशुधन आवारा छोड़ा तो उससे प्रतिस्पर्धा तय है इस बीच उस गाय की दुर्दशा भी तय हो जाती है लेकिन आज के चार पहिया वाहन की व्यवस्था के दौर और मंहमे से मंहगा कुत्ता पालने के शौकीन समाज से इस समस्या समाधान की उम्मीद पत्थर में सिर पटकने की तरह ही होगा

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लेकिन इस बीच वर्तमान के लोकतंत्रीय व्यवस्था से उम्मीद और उसकी जिम्मेदारी और अधिक लाजिमी इसलिए हो जाती है क्योकि लोकतंत्र की संवैधानिक व्यवस्था ही कहती है कि जब समाज अपने कर्तव्य से विमुख होने लगे तो कानून के डंडे से समाज को हांकने का काम करने के लिए शासन प्रशासन को पूरा हक है, कमोबेश वर्तमान परिवेश अब इसकी पूरी इजाजत भी देता है।

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शासन प्रशासन की जिम्मेदारी जैसा कि मऊगंज जिले के आकड़े बताते हैं कि क्षेत्र में लगभग 56 गौशालाओं में 24 संचालित है जिन्हें स्वीकृति धनराशि भी दी जा रही है लेकिन सूत्र बताते हैं कि वह भी सिर्फ कागजों में चल रही है धरातल में कुछ नहीं है।अगर शासन थोड़ा संवेदनशील हो जाए और गोबर खरीदी योजना को महत्व देने लगे तो किसी हद तक समस्या समाधान की उम्मीद हो सकती, पशुओं के कान में टैग व्यवस्था का अगर सख्ती से पालन करते हुए,

Amar republic

अन्य अति आवश्यक सेवाओं की तरह प्रत्येक गाँवों में आवारा पशुओं की सूचना के लिए इमरजेन्सी नंबर बनाए जाए जिसमें जिम्मेदार कर्मचारी तैनात किए जाए तो शायद किसानों की विकराल समस्या के साथ साथ निरीह पशुओं पर हो रहे बेइंतिहा अत्याचार पर भी रोक लग सके। लेकिन यह सब तभी संभव है जब समस्या समाधान के लिए संवेदनशील सोच आगे आए।

ऐसे में याद आता किसी विद्वान का यह कथन कि कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान ना हो सके और ऐसा कोई मर्ज नहीं कि जिसकी दवा ना हो लेकिन इसके लिए सोच होना चाहिए और कर्म भी।


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