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रीवा। मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान विंध्य क्षेत्र की रीवा सीट पर भाजपा के विकास पुरुष और

जनसंपर्क मंत्री राजेंद्र शुक्ला की मुश्किलें बढ़ाने की आहट होने लगी है।

अभी तक अजेय की भूमिका में नजर आने वाले मंत्री को दमदार चुनौती देने के लिए टीआरएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य

डॉ रामलला शुक्ल चुनावी मैदान में ताल ठोंकने पर विचार कर रहे हैं।

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शिक्षाविद और समाजसेवी डॉ रामलला शुक्ल किसी भी तरह से परिचय के मोहताज नहीं है।

रीवा शहर में शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जहां रहने वाले लोग डॉ रामलला शुक्ल से परिचित न हो।

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मजबूत जनाधार और लोगों के बीच उनकी पैठ जनसंपर्क मंत्री के लिए जोर का झटका देने का काम कर सकती है।

राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए जनसंपर्क मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल को कैसे फंसाया, इस सच्चाई को रिमही जनता बेहतर तरीके से जानती है।

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शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल के खिलाफ आर्थिक अनियमितता को लेकर जो सुनियोजित बवंडर मचाया गया था,

उसकी हकीकत उनके सेवानिवृत्त होने के बाद दस्तावेजों के साथ सामने आ गई है।

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सोमवार को पूर्व प्राचार्य द्वारा अपने निवास पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान

मीडिया को पूरे प्रकरण से संबंधित सर्टिफाइड दस्तावेज उपलब्ध करते हुए पूरे मामले का खुलासा किया गया है।

टीआरएस कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ अर्पिता अवस्थी द्वारा 22/7/2020 को तत्कालीन कलेक्टर से शिकायत करते हुए

पूर्व प्राचार्य के कार्यकाल के दौरान कैशबुक में आर्थिक अनियमितता किए जाने की बात करते हुए जांच के लिए आग्रह किया था।

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लेकिन मजेदार बात यह है कि शिकायत होने के बाद कलेक्टर ने जिस जांच समिति का गठन किया,

उसके सदस्यों ने कैशबुक में आर्थिक अनियमितता को छोड़कर कालेज के आटोनामी की जांच शुरू कर दी।

तत्कालीन कलेक्टर ने 7-8-2020 को तीन सदस्यीय जांच दल बनाया, जिसमें अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा,

सहायक संचालक अन्य पिछड़ा वर्ग और कोषालय अधिकारी को शामिल किया।

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लेकिन जब जांच कमेटी टीआरएस कॉलेज में जांच करने पहुंची तो उसमें अभयराज सिंह और पुष्पराज सिंह शामिल थे,

जिनका उल्लेख कलेक्टर के आदेश पर गठित जांच समिति में नहीं था।

टीआरएस कॉलेज में आंतरिक मूल्यांकन की व्यवस्था ऑर्डिनेंस 129 के तहत प्रभावी है,

जिसे जांच समिति ने जानबूझकर अनदेखा कर दिया। कालेज में आंतरिक मूल्यांकन शुल्क निर्धारण 2003-04 में किया गया,

2005 में विश्विद्यालय द्वारा ऑर्डिनेंस को अंगीकृत किया गया। बताया जाता है कि 2009 में वित्त संरचना कार्य परिषद से अनुमोदित कर दी गई।

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इसके बाद 2011 और 2015 में भी वित्त संरचना बनाई गई। उसी के आधार पर पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल द्वारा

आंतरिक मूल्यांकन के दौरान काम में लगने वालों को भुगतान किया जाता था। साल में तीन बार होने वाली आडिट टीम,

दो बार नैक मूल्यांकन करने वाली टीम और तीन बार कालेज आने वाली यूजीसी की टीम ने आंतरिक मूल्यांकन की व्यवस्था को उचित ठहराया,

इसके बाद भी राजनैतिक दबाव में काम करने वाली जांच समिति ने सभी तथ्यों को नजरअंदाज कर जांच का कोरम पूरा कर दिया।

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कुल मिलाकर टीआरएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ रामलला शुक्ल को फंसाने के लिए सरकारी मशीनरी का बेहतरीन उपयोग किया गया है।

रिपोर्ट- राजीव द्विवेदी


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