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मध्य प्रदेश में तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट पेश करने की तैयारी में है। बड़ी बात ये है कि हार्ड डिस्क में टेम्परिंग की पुष्टि होने के बाद भी जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू यह पता नहीं कर सकी कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की थी। इसीलिए इसकी जांच ठंडे बस्ते में चली गई।

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ईओडब्ल्यू का कहना है कि जांच जारी है, पिछले महीने ही बीपीएन डेटा और बैकअप फाइल कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पोंस टीम (सर्ट-इन) को भेजी हैं। हालांकि मामले में छह आरोपियों को विशेष अदालत सात महीने पहले सबूतों के अभाव में बरी कर चुकी है, क्योंकि जांच एजेंसी कोर्ट में यह साबित करने में नाकाम रही कि आखिर टेंडर में छेड़छाड़ किसने की। ईओडब्ल्यू ने जांच के दौरान 40 से 50 हार्ट डिस्क जब्त की थीं। इन्हें जांच के लिए सर्ट-इन भेजा है।

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इसके पूर्व जो हार्ड डिस्क भेजी गईं थी, उनकी रिपोर्ट सितंबर 2021 में आईं थी, जिसमें टेम्परिंग की पुष्टि हुई थी, लेकिन सर्ट-इन यह स्पष्ट नहीं कर सकी थी कि टेम्परिंग किसने की। जांच एजेंसी भी अब तक उन आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी, जिनके द्वारा टेंडर में टेम्परिंग की थी। जांच एजेंसी का कहना है कि धारा 173 (8) के तहत जांच जारी है।

9 टेंडर से छेड़छाड़ की गई थी

ई-टेंडर घोटाले में 18 मई 2018 में प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की गई थी। प्राथमिकी जांच के बाद 10 अप्रैल 2019 को एफआईआर दर्ज की गई। प्रारंभिक चरण में इसे करीब 3 हजार करोड़ का घोटाला माना गया। जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू का मानना था कि प्रिक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ कर कुल 9 टेंडर से छेड़छाड़ की गई। इसमें जल निगम के 3, पीडब्ल्यूडी के 2, पीएचई के 2, एमपीआरडीसी का एक और पीडब्ल्यूडी का एक टेंडर शामिल था।

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रसूखदार हो चुके बरी

इस मामले में मप्र इलेक्ट्रानिक विकास निगम के ओएसडी नंद किशोर ब्रह्मे, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डायरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोलवलकर, एनट्रेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन, भोपाल के व्यवसायी मनीष खरे एवं एक अन्य आरोपी थे। ईओडब्ल्यू ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था।


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