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प्रजातंत्र में चुनाव की प्रकिया आम बात है लेकिन जहां तक देखा जाय तो मऊगंज का चुनाव कभी आम तो नहीं रहा, लेकिन जनता का दुर्भाग्य रहा कि खास भी नहीं रहा।

अति दुर्भाग्य पूर्ण सदैव इसलिए रहा कि या तो सत्ता पक्ष के विधायक नहीं चुने जाते थे या फिर कुछ अपवाद छोड़ दें तो सदैव बाहरी नेता आकर विधायक बनते रहे,
इससे भी बड़ा दुर्भाग्य या सौभाग्य कहें कि पहली बार सत्ता पक्ष के विधायक मिले लेकिन जनता को इस दरम्यान जो कटु अनुभव मिला जिससे क्षेत्र की जनता आज भी कराह रही हैं,
विकास से दूर छटपटाती क्षेत्र की जनता को कभी कोई क्षेत्रीय वह नेता नहीं मिला जिसकी वजह से जनता समझे कि जनहितैशी नेता कैसा होता है।

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आज तक क्षेत्र में ऐसे ऐसे तथाकथित बाहरी नेता मिलते रहे जो जिस डाल में बैठते रहे उसी को काटते रहे छोटे छोटे चुनाव जीतने पर भी कोई अपने को सिस्टम सुधारने वाला तो कोई अपने को विकास पुरुष समझते रहे ,और इस दो बंदरों के बीच लड़ाई में बिल्ली की होशियारी की कहानी की तरह रोटी बाहरी आकर खाते रहे, जिससे जो दुर्गति मऊगंज क्षेत्र की है शायद कहीं होगी चंद अंगुली से गिने लोगों को छोड़ दें तो तो पूरे क्षेत्र की जनता की दुर्गति और दुर्दशा अनकही,अकथनीय सदैव से ना केवल रही आगे भी रहने की पूरी संभावना ‌है।

बीते चार वर्षों में क्षेत्र में कितना विकास आंकलन करने की आवश्यकता

यह कटु सत्य है कि बाहरियों के लिए राजनैतिक चारागाह बनता रहा है मऊगंज का इतिहास गवाह है कि जिन जिन बाहरी नेताओं को क्षेत्रीय जनता ने विश्वास कर अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व दिया है,वह क्षेत्र का विकास छोड़ अपना और अपनो का विकास करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, इन बाहरी नेताओं का सिर्फ एक ही फंडा चुनाव जीत कर पहले जमीन खरीदो फिर आम जनमानस के बीच पूरे पांच साल क्षेत्रीय होने का स्वांग रचाओ। पिछले चार पंचवर्षीय का रिकॉर्ड देख लिजिए, पूर्व विधायक डॉ आई एम पी वर्मा जमीन और दुकान, लक्ष्मण तिवारी ने भी मऊगंज और हनुमना में जमीन खरीद कर निवास बनाया था, और मऊगंज के वार्ड नंबर 2 के स्थाई निवासी भी बन गए थे, और अब कहां है।

वर्तमान की बात ही क्या करें!

वो भी इस दो नंबरी वार्ड के स्थाई निवासी बन चुके हैं,बीते चार वर्ष में ही (पूत के पांव पालने में दिखाई दे रहे हैं) समूचे क्षेत्र में कोहराम मचा हुआ है ,सड़क बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है क्षेत्र, शहर की हालत देखकर ऐसा लगता है कि कोई सुनामी आई और सबकुछ उजाड़ कर चली गई इस सुनामी के बाद एक विकास जरुर मिला, जो दर्शनीय है रतनलाल का ऐतिहासिक डिवाइडर, ऐतिहासिक इसलिए कहा जा रहा है कि कुछ अध्यनरत क्षात्र जो अभी हाल ही में पटवारी की परीक्षा दिए हैं उनके द्वारा बताया गया‌ की सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी में पूछा गया एक सवाल यह भी था कि,

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ऐसा कौन सा शहर है जहां रोड से पहले डिवाइडर बना है

जन चर्चा , कई संभ्रांत नागरिकों ने तो यहां तक तंज कसा कि मऊगंज की सड़कों पर निकलने से पहले सोन और तुलसी खाकर निकलना चाहिए। क्योंकि इन सड़कों पर आ जाने के बाद सुरक्षित घर पहुंच जाएंगे इसकी गारंटी नहीं है, इस एतिहासिक डिवाइडर से प्रतिदिन हो रही दुर्घटनाओं की वजह से मऊगंज सिविल अस्पताल में पदस्थ सफाई कर्मचारी भी अब एक कुशल ड्रेसर बन चुके हैं, अक्सर आप सब देखते होंगे कि सिविल अस्पताल में पदस्थ स्वीपर भी ड्रेसिंग करते पाए जाते हैं, मुख्यमंत्री सीखो और कमाओ योजना का लाभ सिविल अस्पताल में पदस्थ सफाई कर्मियों को मिलने लगा है।

आपु गए अरू ‌ तिन्हहू घालहिं।
जे कहु सत मारग प्रतिपालहिं।।

बाकी चर्चा अगले अंक में,
धरने वाली राजनीति रही कितनी लाभकारी?

 


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