2023 के विधानसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है,
वैसे वैसे मध्य प्रदेश के गुढ़ में राजनीति रोचक होती जा रही है।
2023 के विधानसभा चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा है,
वैसे वैसे मध्य प्रदेश के गुढ़ में राजनीति रोचक होती जा रही है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंक,
लूट के साथ अराजकता के माहौल से मुक्ति पाना कहीं ना कही बड़ा मुद्दा बन रहा है।
जिसके विरोध में आम जनता लामबंद होकर सत्ता पक्ष को उखाड़ फेंकना चाहती है।
दूसरी सबसे बड़ी और खास बात क्षेत्र की जनता बाहरी प्रत्याशियों से इस बार मुक्ति पाना चाहती है।
इसलिए अगर हम यह कहते हैं कि इस बार का चुनाव स्थानीय प्रत्याशी कुंवर कपिध्वज सिंह बनाम अन्य प्रत्याशी होगा,
तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा। आइए गुढ़ विधानसभा सीट की राजनीति को समझते हैं विस्तार से।
गुढ़ का भौगोलिक व सांस्कृतिक महत्व
मध्यप्रदेश का रीवा जिला, प्रदेश की राजनीति में अपना अहम स्थान रखता है।
उसमें भी सबसे खास और दिलचस्प गुढ़ विधानसभा की राजनीति रहती है,
उसकी सबसे बड़ी वजह यह क्षेत्र चुरहट क्षेत्र से लगा हुआ है,
राजनीति के तमाम धुरंधरों ने चुरहट की राजनीति का लोहा माना है,
इसलिए इससे लगी यह विधानसभा अपने आप मे खास स्थान रखती है।
गुढ़ विधानसभा क्षेत्र का शृंगार कैमोर की हरी भरी और सुन्दर पहाड़ियां हैं।
य़ह क्षेत्र बड़ी बड़ी चट्टानों से शोभायमान है, जो अपने आप मे अद्भुत व अद्वितीय है,
इससे भी बड़ी बात यह है कि इस क्षेत्र पर भगवान कष्टहर नाथ, भगवान ढूंढेंस्वर नाथ की परम कृपा है और
उन्हीं के सहारे यहां की आवाम है।
यही नहीं स्वयं गुढ़ की पठारी पर विराजमान भगवान भैरवनाथ इस क्षेत्र व
अंचल की पहरेदारी व रखवाली कर रहे है, ताकि इस क्षेत्र की जनता अमन चैन व शांति से जीवन जी सके।
प्राकृतिक संपदा की भरमार लेकिन नौजवान बेरोजगार
अगर हम बात करें गुढ़ विधानसभा क्षेत्र की तो यहां एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट स्थापित है,
भारत देश की सबसे चौड़ी फोरलेन टनल है,
यही नहीं इस पूरे पहाड़ी अंचल को इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के रूप मे विकसित करने का आधा अधूरा प्रयास भी हुआ है।
पूरा का पूरा क्षेत्र खनिज संपदा एवं प्राकृतिक औषधियों के साथ वन औषधियों तथा
बेशकीमती इमारती लकड़ी से भरा पड़ा है,
बावजूद इसके राजनैतिक दलों एवं स्थानीय नेताओं की उदासीनता के चलते
क्षेत्र की जनता खून के आंसू रोने को मजबूर है।
इतना सब कुछ होने के बाद भी ना तो स्थानीय युवाओं को रोजगार के साधन हैं,
ना ही शिक्षा, स्वास्थ्य कि समुचित व्यवस्था।
बेहतर व्यवस्था तो छोड़िए यहां की जनता सड़क बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रही है।
लगातार य़ह क्षेत्र बाहरी नेताओं के चंगुल में फंसा रहा,
जिसकी वजह से यह पूरा का पूरा इलाका उपेक्षित और असहाय महसूस कर रहा है,
यहां की जनता के लिए नेताओं ने कुछ खास नहीं किया बल्कि इस पूरे क्षेत्र को चारागाह बनाकर
इसका दोहन जरूर करते रहे, यही वजह रही है कि इस क्षेत्र में आजादी के 75 वर्ष बाद भी भय, भूख,
भ्रष्टाचार, और अराजकता के साये में लोगों को जीना पड़ रहा है।
गुढ़ में इस बार विधानसभा चुनाव स्थानीय बनाम बाहरी रहेगा
गुढ़ में लगातार बाहरी प्रत्याशियों को मौका मिला,
यहां से कभी कोई स्थानीय व्यक्ति निर्वाचित होकर विधानसभा तक नहीं पहुंचा
जो जनता के दुःख दर्द को समझ सके और गुढ़ के विकास की बात कर सके।
गुढ़ की जनता के दिमाग में अब बाहरी प्रत्याशी को उखाड़ फेंकने और
स्थानीय नेता को मौका देने की बात घर कर चुकी है,
और इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता स्थानीय प्रत्याशी के मुद्दे को लेकर चर्चा करती देखी जा रही है।
सबसे अधिक इसी बात की चर्चा पूरे क्षेत्र में है, इसी के आधार पर जनता अपना मत भी देने वाली है,
यही नहीं पूरी तरह से बाहरी प्रत्याशियों को उखाड़ फेंकने का ज़ज्बा जनता के सीने में है।
ऐसे में कई सियासतदारों की दीवार खिसकती दिखाई दे रही है, इस लिए अधिकांश लोग घबराए हुए हैं।
अभी तक यहां से जितने विधायक चुने गए सबने क्षेत्र का नहीं जनता का नहीं बल्कि स्वयं का विकास करते रहे,
यानी कि अपने विकास में ही मस्त रह गए,
यही वजह है कि आज भी इस इलाके की वही स्थिति है जो आज से 70 वर्ष पहले रही है।
ऐसे में यह कहना बिलकुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि
इस बार की लड़ाई गुढ़ में स्थानीय बनाम बाहरी प्रत्याशी की होने वाली है।
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गुढ़ में क्या हैं जातिगत समीकरण?
गुढ़ विधानसभा सीट मे अधिकतर सवर्ण ही विधायक बने हैं,
इसके अलावा अगर कोई बना है तो वो है पिछड़ा वर्ग से, यह पूरा क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य है।
इसमें तकरीबन 80 से 85 हज़ार के बीच ब्राह्मण मतदाता हैं,
इसके बाद सबसे अधिक यानि कि 60 से 62 हज़ार SC-ST मतदाता हैं।
तीसरे स्थान पर इस क्षेत्र में पटेल मतदाता हैं जिनकी संख्या, 20 से 22, हज़ार है।
बात करें क्षत्रीय मतदाताओं की तो गुढ़ में इनकी संख्या 14 से 16 हज़ार के बीच है,
इसी तरह से मुस्लिम वोटरों की बात करें तो इनकी संख्या महज 7,से 8 हज़ार है।
स्थानीय प्रत्याशी कुंवर कपिध्वज सिंह का बजेगा डंका?
गुढ़ विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहाँ पर केवल भाजपा, कांग्रेस, और बसपा का ही दबदबा हमेशा रहा है,
इन सबसे अलग गुढ़ में राजनीति का लोहा अगर किसी ने मनवाया है
तो वो हैं गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय प्रत्याशी कुंवर कपिध्वज सिंह,
जिन्होंने 2013 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और
25 हज़ार से अधिक मत हासिल करके कई बड़े नेताओं समेत बड़े राजनैतिक दलों का खेल बिगाड़ने में सफल रहे।
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तब य़ह चुनाव कांग्रेस की झोली में गया था, और विधायक सुंदर लाल तिवारी बने थे जिन्हें 33741 मत प्राप्त हुए थे,
दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी के सिटिंग एमएलए नागेन्द्र सिंह रहे जो चुनाव हार गए थे।
इन्हें उस समय चुनाव में महज 32359 मत ही प्राप्त हुए थे,
बात करे कुंवर कपिध्वज सिंह (भइया साहब) की तो
इन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में तकरीबन 35000 से अधिक मत प्राप्त हुए थे,
और इस चुनाव में इन्होंने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी।
हालांकि इस चुनाव में विधायक निर्वाचित हुए नागेंद्र सिंह बहुत कम मार्जिन से चुनाव जीत पाए थे।
प्रज्ञा त्रिपाठी नारायण मिश्रा भी भाजपा से प्रबल दावेदारी कर रहे हैं।
प्रज्ञा त्रिपाठी के अलावा स्थानीय प्रत्याशी के तौर पर नारायण मिश्रा भी भाजपा से प्रबल दावेदारी कर रहे हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि इनकी सिफारिश पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला कर रहे हैं।
आप को बता दें कि नारायण मिश्रा क्षेत्र में लगातार सक्रिय राजनीति में शामिल रहे हैं,
क्षेत्र कि प्रत्येक गतिविधियों से लगातार अपडेट भी रहते हैं परंतु ऐसा माना जा रहा है कि
पार्टी अभी इन्हें इस लायक नहीं मान रही है कि ये चुनाव जीत सकते हैं,
दूसरी सबसे बड़ी बाधा इनके लिए भी नागेन्द्र सिंह ही है।
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बात कर रहे हैं भाजपा से जिला पंचायत उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए प्रणव प्रताप सिंह की
जिन्हें विधायक नागेंद्र सिंह के बारिश के तौर पर देखा जा रहा है,
और इनकी दावेदारी प्रबल मानी जा रही लेकिन ऐसा माना जा रहा है,
इनके पास अभी वह राजनीतिक सूझबूझ नहीं है और दूसरी सबसे बड़ी और अहम बात यह है कि
प्रणव प्रताप के पिता की कंपनी श्रीजी इन्फ्रास्ट्रक्चर जिसमें सीबीआई की रेड पड़ी है,
और इनके पिता समेत 6 लोगों के खिलाफ़ एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है।
इसके बाद कोर्ट ने ज़मानत याचिका भी खारिज कर दी है।
इस घटनाक्रम के बाद इनकी छवि पूरी तरह से धूमिल हुई है,
इसका असर इनके टिकट के साथ भाजपा की कार्यप्रणाली पर भी पड़ रहा है,
अब ऐसा माना जा रहा है इनको टिकट मिल पाना दूर-दूर तक संभव नहीं है,
और पार्टी की नजर में इनकी य़ह हैसियत भी नहीं आकी जा रहीं हैं, कि ये विधायकी का चुनाव जीत पाएंगे।
सबसे मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं कुंवर कपिध्वज सिंह
अब हम बात कर रहे हैं आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की जिसमें पड़ने वाले मतों की संख्या
लगभग 1, लाख 60, हज़ार से 1, लाख 65, हज़ार के बीच हो सकती है,
ऐसे में अगर 2013, से 2018, तक के चुनाव के मतों की बात की जाय तो
भारतीय जनता पार्टी के मतों में ज्यादा फर्क़ नहीं दिखाई दे रहा है,
बल्कि सत्ता पक्ष को लेकर एंटी इनकंबेंसी अधिक देखी जा रही
ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी अगर नागेंद्र सिंह को पुनः प्रत्याशी बनाती है,
तो इन्हें महज 30 से 35 हजार मत मिल सकते हैं।
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इसी तरह से कांग्रेस पार्टी से अन्य दावेदार राजेन्द्र मिश्रा भी 20,से 25, हज़ार मतों तक सीमित रह जाएंगे,
यही हाल बृज भूषण शुक्ला का है इन्हें भी 30 से 35 हजार मतों पर संतोष करना पड़ेगा,
बात करें बहुजन समाज पार्टी की तो इस बार बहुजन समाज पार्टी को भी 20 से 25 हजार वोट मिलने की संभावना है,
इसी तरह से अन्य प्रत्याशी जो चुनाव मैदान में होंगे उन सबका वोट मिला दिया जाए,
तो लगभग 15000 वोट मिलने की संभावना है,
वहीं बात करे कुंवर कपिध्वज सिंह भैया साहब की तो वर्तमान स्थिति में
यह 80 से 85 हजार मतों के साथ चुनाव मैदान में हैं,
और वर्तमान में इनके मुकाबले गुढ़ विधानसभा क्षेत्र में कोई प्रत्याशी दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहे हैं।
राजीव द्विवेदी, अमर रिपब्लिक