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देश के चौथे स्तंभ की परिभाषा को 2014 के बाद पूरी तरह बदलने वाले तथाकथित चरणचुबंन करने वाले

पत्रकारों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। भाजपा द्वारा तय किए गए मुद्दों को आगे बढ़ाने वाली

पत्रकारिता करने वाले लोगों को सबक सिखाने का वक्त हमारे देश में शुरू हो गया है।

विपक्षी राजनैतिक दलों द्वारा बनाए गए इंडिया गठबंधन ने देश के 14 नामचीन गोदी मीडिया एंकर्स को आईना दिखाते हुए

उनका बायकाट करने का बड़ा फैसला किया है। बताया जाता है कि चरण चुंबन करने वाले

तथाकथित पत्रकारों की दूसरी लिस्ट जल्द इंडिया गठबंधन द्वारा जारी होने वाली है।

छात्र को मारा जोरदार थप्पड़ : हेड इंजरी से हालत बिगड़ी, बच्चे की मेडिकल रिपोर्ट का इंतजार है, घटना के बाद से फरार म्यूजिक टीचर पर मामला दर्ज

इधर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश के गृह मंत्रालय को तीन महीने का समय देते हुए कहा है कि

देश में सामाजिक और धार्मिक बंटवारे की पत्रकारिता करने वाले एंकर्स पर लगाम लगाने का काम किया जाए।

कुल मिलाकर किसी भी सरकार या राजनैतिक दल के प्रभाव में आकर

चाटुकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए आने वाला समय सबक सिखाने वाला साबित होने वाला है।

देश के चौथे स्तंभ की परिभाषा को 2014 के बाद पूरी तरह बदलने वाले

तथाकथित चरणचुबंन करने वाले पत्रकारों की उलटी गिनती शुरू हो गई है।

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भाजपा द्वारा तय किए गए मुद्दों को आगे बढ़ाने वाली पत्रकारिता करने वाले

लोगों को सबक सिखाने का वक्त हमारे देश में शुरू हो गया है।

विपक्षी राजनैतिक दलों द्वारा बनाए गए इंडिया गठबंधन ने देश के 14 नामचीन गोदी मीडिया एंकर्स को

आईना दिखाते हुए उनका बायकाट करने का बड़ा फैसला किया है।

amar republic

हमारे देश में पत्रकारों की अहमियत आखिर कब तक यूज एंड थ्रो की परिधि में सीमित रहेगी?

हर आपदा में सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले

पत्रकारों को हमारी मोदी सरकार कोरोना वारियर्स नहीं मानती है, आखिर क्यों?

भारत देश का इतिहास साक्षी रहा है कि देशहित से भरे मामलों में हमेशा पत्रकारों ने

अपने जीवन की परवाह किए बिना ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ काम किया है।

जब कोरोना वायरस महामारी के डर ने लोगों को देश भर में घरों के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया,

तब भी एक पत्रकार ही है जो सबकुछ बुलाकर लाक डाउन की वास्तविकता को

जनता जनार्दन के सामने लाने का काम जिम्मेदारी के साथ कर रहा है।

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मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में एक वरिष्ठ पत्रकार की दर्दनाक मौत सिर्फ इसलिए हो गई

क्योंकि उन्हें कोरोना पाजीटिव होने के बाद भी भाजपा सरकार की स्वास्थ्य सुविधाएं नसीब नहीं हुई?

आखिर कब तक हम पत्रकार सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की संयुक्त उपेक्षा का दंश झेलते रहेंगे?

इंदौर जैसे महानगर में एक वरिष्ठ पत्रकार की मौत सिर्फ इसलिए हो गई क्योंकि उन्हें समय पर मेडिकल उपचार नसीब नहीं हुआ।

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देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिलने के बाद भी देश के उस चौथे स्तंभ के बारे में

आज तक किसी भी सरकार ने सोचना तक आवश्यक नहीं समझा। विश्व के दूसरे देशों में पत्रकारों के लिए

सरकारें तमाम तरह की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाने की व्यवस्था लागू कर चुकी हैं।

लेकिन हमारे भारत देश में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने पत्रकारों के लिए

कभी कोई सुविधा देना तक आवश्यक नहीं समझा।

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लोकसभा चुनाव 2014 में बदलाव की क्रांति पूरे देश में महसूस होने लगी थी।

जनता जनार्दन को मोदी के तौर पर उम्मीद की एक किरण नजर आई तो पूरा देश मोदीमय हो गया।

पत्रकारों को भी देश में बड़े बदलाव की उम्मीद रही।

इसी उम्मीद में लोकसभा चुनाव 2019 भी भाजपा के लिए गोल्डन चांस साबित हुआ।

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नोटबंदी, जीएसटी जैसे घातकीय फैसलों को देश के बिकाऊ मीडिया ने जरुर ऐतिहासिक सुधार की तस्वीर बताना शुरू कर दिया?

बड़े उद्योग घरानों, बनिया समाज के लोगों ने मीडिया के बड़े संस्थानों को शुरू कर दिया और

दोनों हाथों से करोड़ों रुपए का राजस्व कमाने लगे।

लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान ही अंबानी और अडाणी ने बिकाऊ मीडिया मैनेजमेंट को लक्ष्मी से तौल दिया।

मीडिया संस्थानों के मालिकों को राज्यसभा सांसद बनाकर उपकृत कर दिया गया।

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इसलिए बिकाऊ मीडिया और मोदी सरकार में एकला चलो वाला टाईअप सफलता पूर्वक हो गया।

लेकिन एक पत्रकार जरुर अपने जमीर को जिंदा रखने के लिए वास्तविक हालातों पर ग्राउंड रिपोर्टिंग करता रहा।

ऐसा करने वाले पत्रकारों को मोदी सरकार के इशारे पर बेरोजगार बना दिया गया।

देश के चंद सीनियर पत्रकारों ने मोदी महिमा बखान करने से इंकार करते हुए

स्वतंत्र पत्रकारिता को जनहित की आवाज उठाने के लिए प्रमुख औजार बना लिया।

आखिर क्यों वास्तविक पत्रकारिता को जीवित रखने वाले पत्रकारों को

केंद्र और राज्य सरकार किसी तरह की सुविधाएं प्रदान नहीं करती हैं।

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बड़े नाम वाले मीडिया संस्थानों को चलाना और वास्तविकता के धरातल पर

उतरकर निष्पक्ष पत्रकारिता करना अलग-अलग काम होता है।

हर आपदा में सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर

चलने वाले पत्रकारों को हमारी मोदी सरकार कोरोना वारियर्स नहीं मानती है, आखिर क्यों।

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भारत देश का इतिहास साक्षी रहा है कि देशहित से भरे मामलों में हमेशा पत्रकारों ने

अपने जीवन की परवाह किए बिना ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ काम किया है।

जब कोरोना वायरस महामारी के डर ने लोगों को देश भर में घरों के अंदर रहने पर मजबूर कर दिया,

तब भी एक पत्रकार ही है जो सबकुछ बुलाकर लाक डाउन की वास्तविकता को

जनता जनार्दन के सामने लाने का काम जिम्मेदारी के साथ कर रहा है।

यह सिर्फ लेखक के बिचार हैं……

राजीव द्विवेदी, 

अमर रिपब्लिक


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