मध्य प्रदेश के सीहोर में एक दर्दनाक वाक्या हुआ।
यहां के एक आदिवासी दंपती ने घर के बर्तन बेचकर बच्चे का इलाज करवाया।
पांच दिन के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई तो उनके पास शव को घर ले जाने के भी पैसे नहीं थे।
मजबूरन बेटे के शव को अस्पताल में छोड़ गए। पूरे चार दिन बाद शव का अंतिम संस्कार किया जा सका।
सीहोर में एक दर्दनाक वाक्या हुआ
सीहोर। एमपी के सीहोर में एक दर्दनाक वाक्या हुआ।
यहां के एक आदिवासी दंपती ने घर के बर्तन बेचकर बच्चे का इलाज करवाया।
पांच दिन के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई तो उनके पास शव को घर ले जाने के भी पैसे नहीं थे।
मजबूरन बेटे के शव को अस्पताल में छोड़ गए। पूरे चार दिन बाद शव का अंतिम संस्कार किया जा सका।
भोपाल के हमीदिया अस्पताल की मर्च्युरी में ही बेटे के शव को छोड़ दिया,
गरीब मां-पिता ने भोपाल के हमीदिया अस्पताल की मर्च्युरी में ही बेटे के शव को छोड़ दिया था।
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एक सामाजिक संस्था को जब इसकी जानकारी मिली तो
उन्होंने देवगांव से पिता लालू और मां निर्मला बाई को भोपाल बुलवाया और यहीं बेटे का अंतिम संस्कार करवाया।
देवगांव की निर्मला ने 16 जुलाई को बेटे को जन्म दिया था।
बच्चा जन्म से ही बीमार था। उसे बुदनी के शासकीय अस्पताल से भोपाल रेफर किया गया।
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परिवार के पास बच्चे के इलाज के लिए भोपाल ले जाने लायक भी पैसे नहीं थे।
मजबूरी में जैसे-तैसे पैसों का इंतजाम किया।
बेटे को भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ।
यहां 5 दिन इलाज चलने के बाद 22 जुलाई की शाम आखिरकार बच्चे की मौत हो गई।
दंपती के पास शव को गांव तक लाने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे।
अस्पताल में एक-दो लोगों से वाहन की व्यवस्था करने की गुहार लगाई,
लेकिन वहां उनकी सुनने वाला कोई नहीं मिला- बताया जा रहा है कि
उन्होंने अस्पताल में एक-दो लोगों से वाहन की व्यवस्था करने की गुहार लगाई,
लेकिन वहां उनकी सुनने वाला कोई नहीं मिला।
मजबूर मां पिता अपने बेटे का शव यहीं रखकर वापस गांव चले गए।