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इंदौर मध्य प्रदेश। वीडियो कॉलिंग पर मां के सामने रोती-बिलखती हुई शहडोल की इस युवती को देखिए, जो पढ़-लिखकर जॉब करने, अपने सपनों-अरमानों को पूरा करने इंदौर आई। उसका दर्द, उसके साथ सुबह-सुबह जो हुआ, उसकी आपबीती महसूस कीजिए।

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भगवान न करे, लेकिन यदि ये आपकी बेटी के साथ होता तो… इस परदेशी बिटिया की बातें सुनकर आपकी आंखें गुस्से से लाल होनी चाहिए। पुलिस-प्रशासन, सुरक्षा व्यवस्था पर गुस्सा आना चाहिए क्योंकि ऐसा एक नहीं, अनेक युवतियों-महिलाओं के साथ हो रहा है। लानत है ऐसी व्यवस्था पर !

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बेटी की जुबानी पूरी घटना..

मां, मैं रात की शिफ्ट में काम कर सुबह पौने सात बजे स्कीम-78, ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर के पास स्थित अपने ऑफिस से रूम पर लौट रही थी। वृंदावन रेस्टोरेंट वाली सड़क से होते हुए हट्टी मार्केट की ओर से सड़क किनारे-किनारे जा रही थी। गले में पर्स को क्रॉस करते हुए लटका रखा था।

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सड़क सुनसान थी। पैदल-पैदल जा रही थी, तभी बाइक सवार दो बदमाश पीछे से आए और पर्स पर झपट्टा मारा। पर्स खींचने लगे। पर्स कंधे पर नहीं लटका था, गले में था इसलिए आसानी से नहीं निकला और मैं सड़क पर तीन-चार सौ फीट तक घिसटती चली गई। मेरे हाथ-पैर छिलने लगे। मुझे घावों पर जलन होने लगी। इसके बावजूद वे बदमाश नहीं पसीजे और उन्होंने पर्स नहीं छोड़ा।

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मैं सड़क पर घिसटती जा रही थी, मदद की गुहार लगा रही थी, हाथ-पैर छिलते जा रहे थे। इस पर मैंने गले में से पर्स निकाल दिया। बदमाश उसे लेकर फुर्र हो गए। अगर मैं पर्स नहीं छोड़ती तो शायद वे मुझे और घसीटते ले जाते। मोबाइल फोन मेरे हाथ में था मां, इसलिए वह बच गया। पर्स में कुछ रुपए और डॉक्युमेंट्स थे, जो वे बदमाश उड़ा ले गए।

मां..मेरे साथ जो हुआ पापा को मत बताना..’

वारदात का शिकार होने के बावजूद घायल बेटी ने मां को समझाते हुए आगे कहा मां, तुम घबराना नहीं। मैं ठीक हूं। मेरे साथ जो भी हुआ, ये आप पापा को बिल्कुल मत बताना, वर्ना वे मुझे यहां जॉब नहीं करने देंगे और वापस घर शहडोल बुला लेंगे।

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पहले ही तो वे मुझे घर से दूर भेजने में डर रहे थे, कि मेरी लाड़ली कैसे इतने बड़े शहर में अकेली रहेगी… कैसे रात-बिरात आएगी-जाएगी। मां, ये लोग ऐसा क्यों करते हैं… इनकी ऐसी हरकतों के कारण ही कोई मां-बाप अपनी बच्चियों को बड़े शहर में पढ़ने-लिखने या जॉब करने भेजने से घबराते हैं। मां, हमें सुरक्षित माहौल क्यों नहीं मिल सकता? सरकार चाहती है कि बेटियां पढ़े-लिखें और काबिल बने।

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ऐसे में हमारे घरवाले कैसे हमें बाहर निकलने देंगे? सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, युवतियों-महिलाओं की सुरक्षा के दावे तो बड़े-बड़े करती है, लेकिन उनको ऐसा माहौल नहीं दे पाती, जिसमें वे घर से बेधड़क, निडर होकर निकल सकें। स्कूल-कॉलेज या वर्कप्लेस पर आ-जा सकें। घूम-फिर सकें। यहां नाइट कल्चर की बात तो होती है लेकिन दिनदहाड़े ही कोई सुरक्षित नहीं है। आश्चर्य और दु:ख इस बात का भी है कि मां अहिल्या की नगरी में ये सब हो रहा है !


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