आज संभवतः कुछ अपवाद छोड़ दें तो एक अदद स्थानीय नेता के अभाव में संघर्षरत मऊगंज में बाहरी नेताओं के जबरदस्त प्रभाव के दरम्यान जो चुनाव हो रहा है या होते रहें हैं
वह उस स्वस्थ लोकतंत्र की वह परिकल्पना तो नहीं था और ना है जो लोकतंत्र के निर्माता या कि हमारे पूर्वजों ने सोचा था आज आलम यह हैकि तथाकथित लोकसेवकों की कार्यशैली जनहितार्थ ना हो कर स्वाहितार्थ हो रही है।
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मुसलमान जनता को क्या कष्ट है क्या समस्या है उनके समाधान में वो क्या कर सकते हैं क्या करना चाहिए दूर दूर तक सोचने की जरुरत नहीं है अगर उम्मीदवार जरूरत समझते तो बस इमोसनल ब्लैकमेल करने की जैसे कि तुम्हारा धर्म खतरे में हैं यां की तुम्हारे जाति खतरे में है
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और दुखद ही नहीं अपनी पराकाष्ठा तक दुखद पहलू यह है कि कि प्रत्येक चुनावों में की नीति नियंता जनता यानी मतदाता भी इनके इस मायाजाल और छलाबे में और आकर सदैव ऐसे ऐसे मऊगंज में जनप्रतिनिधि चुनता है,
जो अपना व्यक्तिगत भला तो खूब मन लगा कर किए, लेकिन क्षेत्र और जनता का कोई भला नहीं कर सके,फिर भी भला हो स्थानीय मतदाताओं का जो फिर से वही करेंगे जो हमेशा से होता आया है किसी ऐसे व्यक्ति को चुनेगे जो उनके जाति या धर्म का हो लेकिन यह नहीं सोचेगे कि उसने पहले समाज में क्या क्या जनता के दुख सुख में किया।
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कतिपय लोगों के बीच चर्चा आम है कि मऊगंज में कब वास्तविक लोकतंत्र जीवंत होगा और एक ऐसा जनप्रतिनिधि मिलेगा जो घृणित हथकंडो से नहीं अपने कुशल और सकारात्मक तरीकों से जनता का नेतृत्व करेगा।