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मप्र में 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए जहां राजनीतिक दलों में बैठकों का दौर जारी है वहीं लगातार अटकलों का बाजार भी गर्म है।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में प्रत्याशी बनने के लिए दावेदार ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।

उसी के साथ आए दिन कोई न कोई मीडिया चैनल की खबर प्रत्याशियो की घोषणा करती हुई नजर आती है।

आज हम बात कर रहे हैं रीवा जिले की गुढ़ विधानसभा की जहां भाजपा और कांग्रेस से आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार जोर आजमाइश कर रहे हैं।

यहां हम भारतीय जनता पार्टी के सम्भावित दावेदारों की जीत की सम्भावना, उनकी जमीनी तैयारी और सामाजिक राजनीतिक समीकरणों की बात करेगें।

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रीवा शहर से सटी कष्टहरनाथ की इस धरती गुढ़ से भारतीय जनता पार्टी के लिए एक प्रमुख नाम रीवा के पूर्व सांसद और

गुढ़ विधानसभा के पूर्व विधायक स्व. चंद्रमणि त्रिपाठी की बेटी प्रज्ञा त्रिपाठी का प्रत्याशी के रूप में हो सकता है।

आखिर क्यूं बीजेपी के लिए प्रज्ञा गुढ़ में तुरूप का इक्का हो सकती है इस खबर का हम विश्लेषण करेंगे।

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हमारे सूत्रों के अनुसार अमित शाह और शिवराज दोनों के सर्वे के साथ ही संघ के सर्वे में भी प्रज्ञा त्रिपाठी का नाम पैनल में

रीवा के सिरमौर विधानसभा के साथ ही गुढ़ विधानसभा से भी प्रमुखता से रहा है।

प्रज्ञा त्रिपाठी रीवा जिले में एकमात्र ऐसी नेत्री रही जिनका दो विधानसभा से सर्वे और पैनल में नाम है।

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बीते दिनों जिस तरह चौंकाने वाले फैसले लेते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपने केंद्रीय मंत्रियो और सांसदों को मैदान में उतारा है

तो ऐसी ही उलटफेर की सम्भावना रीवा जिले की आठों विधानसभा के साथ ही गुढ़ में भी हो सकती है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम करने के कारण बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से प्रज्ञा की नजदीकी तो रही ही है,

महिला मोर्चा की केंद्रीय टीम में काम करने के समय केन्द्रीय मंत्री और अमेठी सांसद स्मृति इरानी से भी इनकी नजदीकी राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय है।

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पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान अमेठी में स्मृति की टीम में काम करते हुए इन्होंने जीत में अहम भूमिका निभाई थी।

इसीलिए संघ और संगठन दोनों से नजदीकी प्रज्ञा के लिए फायदेमंद हो सकती है।

संगठन में काम करते हुए उमरिया और सिंगरौली जिले की प्रभारी के साथ ही महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री और

झारखंड की प्रभारी के रूप में उनका कम उम्र में इतना संगठनात्मक अनुभव उनके राजनैतिक कद को बड़ा करता है।

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गुढ़ विधानसभा के जातीय समीकरण और शिवराज सरकार की गेम चेंजर लाड़ली बहना योजना इन दोनों ही समीकरण में प्रज्ञा त्रिपाठी का नाम फिट बैठता है।

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यही कारण है कि बदली परिस्थितियों में क्षेत्र की मांग के अनुसार प्रज्ञा त्रिपाठी की उम्मीदवारी उस नाराजगी को कम कर सकती है।

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1977 में जब युवा चंद्रमणि त्रिपाठी जनता पार्टी से गुढ़ विधानसभा के प्रत्याशी बने तब किसी ने नहीं सोचा था

कि उनको जीत मिलेगी लेकिन जातीय समीकरण के साथ ही उनके संगठनात्मक अनुभव और

युवजन सभा व मीसाबंदियों की मजबूत टीम ने इतिहास बदलने का काम किया।

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बाद में लोकसभा के चुनावों में भी गुढ़ विधानसभा ने हमेंशा उनको लीड दी और उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अपने पिता के गुजरने बाद बीते 10 वर्षो से प्रज्ञा त्रिपाठी पूरे रीवा लोकसभा में सक्रिय रहीं और पार्टी द्वारा दी गई,

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हर जिम्मेवारी को बखूबी निभाया है जिसके कारण बीते लोकसभा के साथ

सिरमौर विधानसभा के लिए भी इनका नाम एक मजबूत दावेदार के रूप में रहा है

लेकिन 2 वर्ष पूर्व प्रदेश नेतृत्व के संकेत पर जिस तरह से इनकी सक्रियता गुढ़ विधानसभा में बढ़ी

वह भाजपा की अंदरूनी तैयारी की ओर इशारा करती है।

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प्रज्ञा त्रिपाठी ने स्वास्थ्य सेवा यात्रा के रूप में स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से हर गांव मोहल्ले तक अपनी पहुंच और पकड़ बनाने का काम किया।

साथ ही आशा-आंगनवाड़ी बहनों का सम्मान और लाड़ली बहनों के साथ संवाद कार्यक्रम से लोगों के बीच राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं।

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अब जबकि भाजपा सहित सभी राजनीतिक दल महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की बात करते हैं

तो 2029 में महिला आरक्षण लागू होने से पहले देखना दिलचस्प होगा कि

आगामी विधानसभा चुनावो में टिकटो में यह फार्मूला लागू होगा

या महिला सशक्तिकरण महज एक चुनावी जुमला साबित होगा।

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यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रीवा जिले में एक भी महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे थे।

ऐसे में प्रज्ञा त्रिपाठी के रूप में संगठन के मजबूत चेहरे के सहारे भाजपा गुढ़ ही नहीं

पूरे रीवा जिले में महिला वोटरों को साधने के लिए मैदान में उतर सकती है।

अगर हम बात करें गुढ़ से बीजेपी के अन्य दावेदारों की तो पहला नाम यहां से वर्तमान विधायक नागेन्द्र सिंह का ही आता है

जिनकी उम्र उनकी टिकट के आड़े आ रही है वो न सिर्फ भाजपा के 75 प्लस के फार्मूले में आड़े आती है

बल्कि पूरे प्रदेश में उम्रदराज विधायको की लिस्ट में नागेन्द्र सिंह का नाम सबसे ऊपर है।

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यही कारण है कि 81 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नागेन्द्र सिंह ने अपने रिश्ते में भाई प्रणव प्रताप सिंह की लांचिंग

जिला पंचायत चुनावों में जितवाकर की और उनका नाम अपनी ओर से विधानसभा प्रत्याशी के लिए आगे बढाया।

लेकिन बीते दिनों जिस तरह से प्रणव प्रताप सिंह के पिता का नाम एक रेलवे रिश्वतकांड में जुड़ने और

सीबीआई लिस्ट में नाम आने के बाद लगता नहीं कि बीजेपी अपनी लिस्ट में उनका नाम रखेगी।

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वैसे भी प्रणव प्रताप सिंह अपने कुल डेढ़ साल के राजनैतिक कैरियर में अभी तक

अपने दादा भाई नागेन्द्र सिंह की छवि से बाहर नहीं निकल पाये है।

अगर हम गुढ़ विधानसभा के अन्य दावेदारों की बात करें तो एक नाम नारायण मिश्रा का आता है,

क्षेत्र में 15 सालों से सक्रिय नारायण ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत बीएसपी से 2008 के विधानसभा में

प्रत्याशी के रूप में की यही उनके टिकट न मिलने का कारण बन सकती है

बीएसपी में रहते हुए नारायण ने कुल अट्ठारह हजार मत जुटाये थे,

वो भी तब जब उस दौर में जिले में बीएसपी के 2 से 3 विधायक हुआ करते थे और

पूर्व में दो बार गुढ़ से बीएसपी के अन्य उम्मीदवार विधायक रह चुके थे।

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सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में प्रत्याशी बने नारायण न तो ब्राह्मणो का वोट पा सके

और न ही बीएसपी के कोर वोटर ने उन्हें अपना प्रत्याशी माना।

एक अन्य नाम बीते दिनों एक अखबार के सर्वे में सामने आया बीजेपी के जिला अध्यक्ष डॉ अजय सिंह पटेल का,

जो कि शिक्षक की नौकरी छोड़ अभी हाल के दिनों में ही राजनीति में सक्रिय हुए हैं।

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ये भी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के खास माने जाते हैं लेकिन न तो गुढ़ से इनका कोई राजनैतिक वास्ता रहा है और

न ही क्षेत्र में इनकी ऐसी कोई सक्रिता है हमारी रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र की हकीकत उस अखबार के सर्वे आपस में मेल नहीं खाते।

इनकी उम्मीद सिर्फ इस बात पे टिकी है कि यदि इनकी ही जाति के कुर्मी विधायक प्रदीप पटेल का टिकट मऊगंज से कटता है

तो इन्हें गुढ़ से टिकट मिल सकता है जबकि अजय पटेल से मजबूत दावेदारी गुढ़ विधानसभा के

पूर्व विधायक शिवनाथ पटेल की बहू और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष माया सिंह की बनती है।

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एक चर्चा इन सबसे इतर सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह को गुढ़ सिफ्ट करने की भी जनता के बीच है।

अब राजनीति के चाणक्य अमित शाह शतरंज की कौन सी चाल चलते हैं या तुरूप के इक्के का इस्तेमाल करते हैं देखना दिलचस्प होगा।

गणेश तिवारी, अमर रिपब्लिक 


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